जीवनी/आत्मकथा >> मदनलाल ढींगरा और शहीद ऊधमसिंह मदनलाल ढींगरा और शहीद ऊधमसिंहअवधेश कुमार चतुर्वेदी
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प्रस्तुत है पुस्तक मदनलाल ढींगरा और शहीद ऊधमसिंह ....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
माँ भारती के आंचल में एक से एक महान वीर पुत्रों ने जन्म लिया है,
जिन्होंने जन्म भूमि के सम्मान के लिए हंसते-हंसते अपना सब कुछ लुटा दिया।
मदनलाल ढींगरा और शहीद उधम सिंह का नाम माँ के उन्हीं वीर पुत्रों में
अग्रगण्य है। जिन्होंने अपनी जिन्दगी का मकसद, सुख, दुख सब कुछ बस एक
लक्ष्य को समर्पित कर दिया था वह लक्ष्य था आजादी। आजादी के इन दीवानों की
अमर गाथा पढ़ते हुए कभी तो आँखों में आँसू आ जाते हैं, तो कभी दिल
स्वाभिमान के नशे में झूम उठता है।
मानव समाज के विभिन्न-क्षेत्रों में सभी मनुष्यों के विचार एक समान नहीं होते हैं- स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान् शूरवीरों में ‘अमर शहीद मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं।
अमर शहीद मदनलाल ढींगरा महान् देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे- वे भारत माँ की आजादी के लिए जीवन-पर्यन्त प्रकार के कष्ट सहन किए परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फांसी पर झूल गए। इस पुस्तक में अमर शहीद क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा व ऊधमसिंह का विवरण प्रस्तुत है।
मानव समाज के विभिन्न-क्षेत्रों में सभी मनुष्यों के विचार एक समान नहीं होते हैं- स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान् शूरवीरों में ‘अमर शहीद मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं।
अमर शहीद मदनलाल ढींगरा महान् देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे- वे भारत माँ की आजादी के लिए जीवन-पर्यन्त प्रकार के कष्ट सहन किए परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फांसी पर झूल गए। इस पुस्तक में अमर शहीद क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा व ऊधमसिंह का विवरण प्रस्तुत है।
प्रारम्भ
हमारे प्यारे भारत देश की आजादी के लिए ना जाने कितने वीर भारतवासियों ने
अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। उनमें से कितने नौजवान विद्यार्थी थे,
उनका विवाह भी नहीं हुआ था सच कहा जाए तो उनके जीवन के इस उत्सर्ग के पीछे
अपना कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं था। सिर्फ भारत आजाद हो, गुलामी से मुक्ति
मिले और अंग्रेज सरकार का खात्मा हो, यही उनका उद्देश्य था।
हमारी सरकार ने आजादी के दिन इन दीवानों के लिए स्मारक बनवाए हैं। सड़कों, नगरों, मोहल्लों का नाम क्रान्तिकारियों के नाम पर रखे गए। गाहे बगाहे लोग इसी आजादी के इन दीवानों का नाम याद कर लेते हैं।
इसके बावजूद बहुत से क्रांतिकारी ऐसे हैं जिनके बारे में इतिहास मौन है। ना उनकी कभी जयंती मनाई जाती है, न उनके नाम पर कोई ग्राम, सड़क, शहर व मोहल्ले का कोई नाम रखा गया था। ऐसे क्रांतिकारियों के बारे में गोरखपुर में एक स्मारक बनाया गया है.......जिस पर शिलालेख लगा है.....उन शहीदों के नाम जिनका इतिहास में कभी कोई जिक्र नहीं होगा।
इन्हीं अनजाने क्रांतिकारियों में अमर शहीद मदनलाल ढींगरा भी एक है।
मदनलाल ढींगरा के कार्यकाल के दौरान भारत का उच्चकुलीन वर्ग अंग्रेज अधिकारियों की ठकुरसुहाती में अपना सर्वस्व लगा रहा था, अंग्रेज सरकार के एक इशारे पर देशी रजवाड़े गोरी सरकार के इशारे पर हर तरह का अत्याचार करने से चूक नहीं रहे थे। भारतीय जनता इस स्थिति में बड़ी उदास थी। उनका कोई भी ऐसा अगुआ नहीं था। जो कोई ठोस रास्ता उनके लिए सुझाता या राजनीति संघर्ष की शुरूआत करता।
जो थोड़ी राजनीति हलचल थी भी वह सरकारी सुविधाएं पाने के लिए थीं। इन लोगों से किसी बड़े कार्य की आशा करना भी व्यर्थ ही था। बहुत से नौजवान कुछ कर गुजरने को उत्सुक थे भी तो उनके पास बहुत अल्प साधन थे। उनको कोई सही राह दिखलाने वाला नहीं था। ये नौजवान देशवासियों को राहत देना चाहते थे। देश के लिए कुछ करने की और अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले इन नौजवानों के लिए कोई रास्ता भी सस्ता नहीं था और कोई प्रणेता भी नहीं था।
मदनलाल ढींगरा उन नौजवानों में से एक थे जिन्होंने क्रांति का मार्ग तलाशने का प्रयास किया। उन्होंने किसी मार्ग की तलाश में स्वयं एक रास्ता न केवल खोजा बल्कि जनता के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया।
ऐसे ही उत्साही वीर मदनलाल ढींगरा की यह जीवन गाथा प्रस्तुत है।
हमारी सरकार ने आजादी के दिन इन दीवानों के लिए स्मारक बनवाए हैं। सड़कों, नगरों, मोहल्लों का नाम क्रान्तिकारियों के नाम पर रखे गए। गाहे बगाहे लोग इसी आजादी के इन दीवानों का नाम याद कर लेते हैं।
इसके बावजूद बहुत से क्रांतिकारी ऐसे हैं जिनके बारे में इतिहास मौन है। ना उनकी कभी जयंती मनाई जाती है, न उनके नाम पर कोई ग्राम, सड़क, शहर व मोहल्ले का कोई नाम रखा गया था। ऐसे क्रांतिकारियों के बारे में गोरखपुर में एक स्मारक बनाया गया है.......जिस पर शिलालेख लगा है.....उन शहीदों के नाम जिनका इतिहास में कभी कोई जिक्र नहीं होगा।
इन्हीं अनजाने क्रांतिकारियों में अमर शहीद मदनलाल ढींगरा भी एक है।
मदनलाल ढींगरा के कार्यकाल के दौरान भारत का उच्चकुलीन वर्ग अंग्रेज अधिकारियों की ठकुरसुहाती में अपना सर्वस्व लगा रहा था, अंग्रेज सरकार के एक इशारे पर देशी रजवाड़े गोरी सरकार के इशारे पर हर तरह का अत्याचार करने से चूक नहीं रहे थे। भारतीय जनता इस स्थिति में बड़ी उदास थी। उनका कोई भी ऐसा अगुआ नहीं था। जो कोई ठोस रास्ता उनके लिए सुझाता या राजनीति संघर्ष की शुरूआत करता।
जो थोड़ी राजनीति हलचल थी भी वह सरकारी सुविधाएं पाने के लिए थीं। इन लोगों से किसी बड़े कार्य की आशा करना भी व्यर्थ ही था। बहुत से नौजवान कुछ कर गुजरने को उत्सुक थे भी तो उनके पास बहुत अल्प साधन थे। उनको कोई सही राह दिखलाने वाला नहीं था। ये नौजवान देशवासियों को राहत देना चाहते थे। देश के लिए कुछ करने की और अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले इन नौजवानों के लिए कोई रास्ता भी सस्ता नहीं था और कोई प्रणेता भी नहीं था।
मदनलाल ढींगरा उन नौजवानों में से एक थे जिन्होंने क्रांति का मार्ग तलाशने का प्रयास किया। उन्होंने किसी मार्ग की तलाश में स्वयं एक रास्ता न केवल खोजा बल्कि जनता के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया।
ऐसे ही उत्साही वीर मदनलाल ढींगरा की यह जीवन गाथा प्रस्तुत है।
बचपन
अमर शहीद मदनलाल ढींगरा का जन्म कब और कहां हुआ था, यह आज भी खोज का विषय
है। पर कुछ इतिहास लेखक यह मानते है कि संभवत: सन् 1887 के आस-पास पंजाब
के किसी स्थान पर मदनलाल ढींगरा का जन्म हुआ होगा। वैसे संभावना तो यही है
कि मदनलाल ढींगरा का जन्म अमृतसर शहर में ही हुआ हो क्योंकि सन् 1855 या
1856 तक मदनलाल ढींगरा का परिवार अमृतसर में आकर बस चुका था।
पंजाब यानी पांच पवित्र नदियों वाला प्रदेश, जहाँ प्राचीन काल से ही महान संत शूरवीर योद्धाओं ने जन्म लिया है। लगभग 450 वर्ष पूर्व इस्लाम के कारण जब हिन्दुत्व संकट में पड़ गया, उस समय हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए हिन्दुओं में जब जागृति के लिए सिख पंथ की स्थापना हुई थी।
ऐसी महान धरती और रणबांकुरी कौम में अमर शहीद मदनलाल ढींगरा का जन्म हुआ था।
उस समय भारत में अंग्रेजों का राज्य था। अंग्रेजी हुकूमत ने इस तरह भारत के उच्च कुलीन परिवारों और राजे रजवाड़ों को इस कदर प्रभावित किया था कि वह अंग्रेजों को बिल्कुल अपना आका समझने लगे थे।
मदनलाल ढींगरा का परिवार भी इसी विचारधारा से प्रभावित था। यह परिवार के सम्पन्न परिवारों में से एक था। उनके पिता राय साहब डॉ. दित्तामल पंजाब सिविल सर्विस के सदस्य थे और पंजाब के सिविल सर्जन के उच्च पद पहुंचे थे। डॉ. दित्तामल जन्म से ही नहीं तथा कर्मों से तथा रहन-सहन से पूरे अंग्रेज थे। साहबी सूट-बूट, सिगार और अंग्रेजी भाषा से अगाध प्रेम। पर डॉ. दित्तामल की पत्नी मंतों बड़े ही धार्मिक संस्कारों को मानने वाली और विशुद्ध आचार वाली महिला थी। हमेशा पूजा भजन में लीन रहती। घर में नौकर और खानसामों की मौजूदगी में वह अपना सादा व शुद्ध शाकाहरी भोजन खुद अपने हाथों से बनातीं और रसोई के अन्दर बैठकर खातीं।
ऐसे धार्मिक संस्कारों वाली महिला के पति डॉ. दित्तामल अंग्रेज-भक्त होने के साथ-साथ बहुत ही धन लोलुप थे। उन्होंने बहुत से मकान अमृतसर में खरीद लिए थे जो उन्होंने किराए पर उठा रखे थे। इसके अलावा खेत-खलिहान, दुकानें, गोदाम आदि जमीन-जायदाद उन्होंने अपनी कमाई से खरीद डाली थी। ऐसे पिता के पुत्र थे मदनलाल ढींगरा, जिनके संस्कार अपने पिता के विचार से बिल्कुल प्रतिकूल थे। मदनलाल ढींगरा बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों में बहुत ज्यादा प्रभावित थे। मंगल पाण्डेय उनके जन-नायक थे।
अपने बचपन में ही मदनलाल ढींगरा ने अपने पिता डॉ.साहब दित्तामल को अंग्रेज अफसरों, जजों, डिप्टी कमिश्नरों के साथ बहुत घुल-मिलकर रहते देखा था।
एक अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर के पास एक बहुत सुन्दर अलसेसियन कुत्ता था। अंग्रेज साहब के सारे आदेश कुत्ते के लिए भी अंग्रेजी भाषा में ही होते थे, जिसे कुत्ता अच्छी तरह समझ लेता था।
एक बार डिप्टी कमिश्नर अपने साथ उस कुत्ते को लेकर सैर करने आया। डॉ. साहब दित्तामल ने उस अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर को अपने घर एक कप चाय पीने बुला लिया। चाय के दौरान ही मदनलाल ढींगरा जो उस समय बहुत कम उम्र के ही थे, खेलते-खेलते उस कमरे में आ गए। कमरे में ही कुत्ता बैठा हुआ था। अपने बचपन और जिज्ञासावश मदनलाल उस कुत्ते से हिन्दी में बोलते हुए प्यार करने लगे। कुत्ता गुर्राता रहा। उसने मदनलाल ढींगरा के इस स्नेह का कोई जवाब नहीं दिया, जिससे मदनलाल ढींगरा का बाल मन थोड़ा-सा क्षुब्ध हो गया।
अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ने हंसते हुए मदनलाल से कहा- ‘‘यह कुत्ता ऊँची अंग्रेजी जाति का है इसलिए सिर्फ अंग्रेजी ही समझता है।’’
क्षुब्ध मदनलाल ढींगरा के मुख से बसाख्ता निकल पड़ा- ‘‘अंग्रेजी भाषा ही कुत्तों की भाषा है।’’
पंजाब यानी पांच पवित्र नदियों वाला प्रदेश, जहाँ प्राचीन काल से ही महान संत शूरवीर योद्धाओं ने जन्म लिया है। लगभग 450 वर्ष पूर्व इस्लाम के कारण जब हिन्दुत्व संकट में पड़ गया, उस समय हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए हिन्दुओं में जब जागृति के लिए सिख पंथ की स्थापना हुई थी।
ऐसी महान धरती और रणबांकुरी कौम में अमर शहीद मदनलाल ढींगरा का जन्म हुआ था।
उस समय भारत में अंग्रेजों का राज्य था। अंग्रेजी हुकूमत ने इस तरह भारत के उच्च कुलीन परिवारों और राजे रजवाड़ों को इस कदर प्रभावित किया था कि वह अंग्रेजों को बिल्कुल अपना आका समझने लगे थे।
मदनलाल ढींगरा का परिवार भी इसी विचारधारा से प्रभावित था। यह परिवार के सम्पन्न परिवारों में से एक था। उनके पिता राय साहब डॉ. दित्तामल पंजाब सिविल सर्विस के सदस्य थे और पंजाब के सिविल सर्जन के उच्च पद पहुंचे थे। डॉ. दित्तामल जन्म से ही नहीं तथा कर्मों से तथा रहन-सहन से पूरे अंग्रेज थे। साहबी सूट-बूट, सिगार और अंग्रेजी भाषा से अगाध प्रेम। पर डॉ. दित्तामल की पत्नी मंतों बड़े ही धार्मिक संस्कारों को मानने वाली और विशुद्ध आचार वाली महिला थी। हमेशा पूजा भजन में लीन रहती। घर में नौकर और खानसामों की मौजूदगी में वह अपना सादा व शुद्ध शाकाहरी भोजन खुद अपने हाथों से बनातीं और रसोई के अन्दर बैठकर खातीं।
ऐसे धार्मिक संस्कारों वाली महिला के पति डॉ. दित्तामल अंग्रेज-भक्त होने के साथ-साथ बहुत ही धन लोलुप थे। उन्होंने बहुत से मकान अमृतसर में खरीद लिए थे जो उन्होंने किराए पर उठा रखे थे। इसके अलावा खेत-खलिहान, दुकानें, गोदाम आदि जमीन-जायदाद उन्होंने अपनी कमाई से खरीद डाली थी। ऐसे पिता के पुत्र थे मदनलाल ढींगरा, जिनके संस्कार अपने पिता के विचार से बिल्कुल प्रतिकूल थे। मदनलाल ढींगरा बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों में बहुत ज्यादा प्रभावित थे। मंगल पाण्डेय उनके जन-नायक थे।
अपने बचपन में ही मदनलाल ढींगरा ने अपने पिता डॉ.साहब दित्तामल को अंग्रेज अफसरों, जजों, डिप्टी कमिश्नरों के साथ बहुत घुल-मिलकर रहते देखा था।
एक अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर के पास एक बहुत सुन्दर अलसेसियन कुत्ता था। अंग्रेज साहब के सारे आदेश कुत्ते के लिए भी अंग्रेजी भाषा में ही होते थे, जिसे कुत्ता अच्छी तरह समझ लेता था।
एक बार डिप्टी कमिश्नर अपने साथ उस कुत्ते को लेकर सैर करने आया। डॉ. साहब दित्तामल ने उस अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर को अपने घर एक कप चाय पीने बुला लिया। चाय के दौरान ही मदनलाल ढींगरा जो उस समय बहुत कम उम्र के ही थे, खेलते-खेलते उस कमरे में आ गए। कमरे में ही कुत्ता बैठा हुआ था। अपने बचपन और जिज्ञासावश मदनलाल उस कुत्ते से हिन्दी में बोलते हुए प्यार करने लगे। कुत्ता गुर्राता रहा। उसने मदनलाल ढींगरा के इस स्नेह का कोई जवाब नहीं दिया, जिससे मदनलाल ढींगरा का बाल मन थोड़ा-सा क्षुब्ध हो गया।
अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ने हंसते हुए मदनलाल से कहा- ‘‘यह कुत्ता ऊँची अंग्रेजी जाति का है इसलिए सिर्फ अंग्रेजी ही समझता है।’’
क्षुब्ध मदनलाल ढींगरा के मुख से बसाख्ता निकल पड़ा- ‘‘अंग्रेजी भाषा ही कुत्तों की भाषा है।’’
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